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ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
जिस के हर क़तरे से रग रग में मचलता था लहू
फिर वही इक शय पिला दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
तू भी दिल को एक ख़ूँ की बूँद समझा है 'फ़राज़'
आँख अगर होती तो क़तरे में समुंदर देखता
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दरिया में यूँ तो होते हैं क़तरे ही क़तरे सब
क़तरा वही है जिस में कि दरिया दिखाई दे
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
तिश्नगी तुझ को बुझाना मुझे मंज़ूर नहीं
वर्ना क़तरे की है क्या बात मैं दरिया दे दूँ