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ग़ज़ल
तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ
छोड़ो न करो बात कि मैं तुम से ख़फ़ा हूँ
बाक़ी सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
पहले मैं ने हुक्म दिया था बस मुझ को महसूस करो
बाद में उस को जिस्म बनाया जिस ने ना-फ़रमानी की
शब्बीर हसन
ग़ज़ल
इतना जुनून-ए-शौक़ दिया क्यूँ ख़ौफ़ जो था रुस्वाई का
बात करो ख़ुद क़ाबिल-ए-शिकवा उल्टे मुझ को रहने दो