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ग़ज़ल
दरीचे में दर आते हैं बहुत से मेहरबाँ चेहरे
मैं उन पर शोख़ जुमले फेंकता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
हम भी मुजरिम की तरह ख़ामोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
आज भी हर्फ़-ए-तसल्ली है शिकस्त-ए-दिल पे तंज़
कितने जुमले हैं जो हर मौक़ा पे दोहराए गए
तालिब जोहरी
ग़ज़ल
नए जुमले तलाशो वाक़ई गर तुम मुक़र्रर हो
हर इक तक़रीर में जुमलों को दोहराया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
तेरे हर नश्तरी जुमले भी लगे हैं प्यारे
तेरे दुश्नाम की तासीर जुदा हो जैसे
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
तुम्हारे सामने आ कर ये लुक्नत सी जो पड़ती है
अधूरे बे-ज़बाँ हो के ये जुमले मार देते हैं
समीना गुल
ग़ज़ल
ज़ुबैर अली ताबिश
ग़ज़ल
दिलों की हुक्मरानी का ये इक अच्छा तरीक़ा है
हर इक जुमले में लफ़्ज़ों को सलीक़े से रखा जाए