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ग़ज़ल
मैं ने ऐसे ही गुनह तेरी जुदाई में किए
जैसे तूफ़ाँ में कोई छोड़ दे घर शाम के बा'द
फ़रहत अब्बास शाह
ग़ज़ल
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी
सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझे तुझ से ख़ास निस्बत मैं रहीन-ए-मौज-ए-तूफ़ाँ
जिन्हें ज़िंदगी थी प्यारी उन्हें मिल गया किनारा
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मल्लाहों को इल्ज़ाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो
ये तूफ़ाँ कौन उठाता है ये कश्ती कौन डुबोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा