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ग़ज़ल
जहाँ में कौन था दोश-ए-नबी जिस का था मुरक्कब
इसी ख़ातिर बरहना-पाई ने तुझ सा चुना था
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
ये जो कहा कि पास-ए-इश्क़ हुस्न को कुछ तो चाहिए
दस्त-ए-करम ब-दोश-ए-ग़ैर यार ने रख दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
इक गौहर-ए-नायाब मिरे हाथ लगा है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
उसे नसीब हुई ने'मत-ए-विला-ए-नबी
जहाँ से 'तहनियत' इस तरह शादमाँ गुज़री
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
ग़ज़ल
मैं ना-तवाँ हूँ ख़ाक का परवाने की ग़ुबार
उठता हूँ रख के दोश-ए-नसीम-ए-सहर पे हाथ