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ग़ज़ल
गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं
क्या ही नादानियाँ नादान से हम देखते हैं
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
बनाए दे रही हैं अजनबी नादारियाँ मुझ को
तिरी महफ़िल में वर्ना जाने-पहचाने बहुत से हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
हँस रहा हूँ याद कर के इश्क़ की नादानियाँ
सुन रहा हूँ दास्ताँ अपनी तिरे अंदाज़ में