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ग़ज़ल
पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
मु'अज़्ज़िज़ हो गए हम भी शराफ़त छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
क्या मुनज्जिम से करें हम अपने मुस्तक़बिल की बात
हाल के बारे में हम को कौन सा मालूम है
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
मुअज़्ज़िज़ शख़्सियत है शहर का अब नामवर ग़ुंडा
कि बन बैठा है वो पार्टी का लीडर लोग कहते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
तुझ को सब देते हैं आवाज़ वो अपने हों कि ग़ैर
इस तरफ़ मैं ने मोअज़्ज़िन ने उधर याद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
नवेद-ए-सर-बुलंदी दी मुनज्जिम ने तो मैं समझा
सगान-ए-दहर के आगे ख़ुदा होने का वक़्त आया
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
दिखा दे जल्वा जो मस्जिद में वो बुत-ए-काफ़िर
तो चीख़ उट्ठे मोअज़्ज़िन जुदा ख़तीब जुदा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मोअज़्ज़िन को भी वो सुनते नहीं नाक़ूस तो क्या है
'अबस शैख़ ओ बरहमन हर तरफ़ फ़रियाद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
सुन लेते हैं चुपके से मोअज़्ज़िन की हम ऐ शैख़
जब हाथ में नाक़ूस-ए-कलीसा नहीं होता