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ग़ज़ल
ये ज़ुल्मतों के परस्तार क्या ख़बर होते
मिरी नवा में ब-जुज़ मुज़्दा-ए-सहर क्या था
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
तड़प कली की है ये इशरत-ए-नुमू के लिए
कि इज़्तिराब है इरफ़ान रंग-ओ-बू के लिए
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
अजब बिस्मिल है 'इशरत' अपने क़ातिल से ये कहता है
सर-ए-महफ़िल तुझे ऐ जान-ए-महफ़िल चाहता हूँ मैं
इशरत ज़फ़र
ग़ज़ल
कैफ़ियत शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म की 'इशरत' सुब्ह-ओ-शाम
आते-जाते मौसमों के क़ाफ़िले लिखते रहे