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ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
न पूछ 'इक़बाल' का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की
कहीं सर-ए-रहगुज़ार बैठा सितम-कश-ए-इंतिज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद