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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
सख़्त-जानी से मैं आरी हूँ निहायत ऐ 'तल्ख़'
पड़ गए हैं तिरी शमशीर में दंदाने दो
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सख़्त-जानी से मैं आरी हूँ निहायत ऐ 'तल्ख़'
पड़ गए हैं तिरी शमशीर में दंदाने दो
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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