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ग़ज़ल
वाहिमा ख़ल्लाक़ आज़ादी का हुस्न-अफ़ज़ा सुरूर
हर फ़रेब-ए-रंग का पहले गुलिस्ताँ नाम था
आसी उल्दनी
ग़ज़ल
कितनी ख़ल्लाक़ है ये नीस्ती-ए-इश्क़ 'फ़िराक़'
उस से हस्ती है 'इबारत मुझे मा'लूम न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा
तू ही देख ऐ मिरे ख़ल्लाक़ हुस्न-ए-राएगाँ मेरा
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
हम को ये ग़म ही न ले डूबे कहीं ख़ल्लाक़-ए-ख़ल्क़
बे-ज़मीरों पर रहेगी ताज-दारी कब तलक
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
जब तक सर से ख़ूँ न बहेगा कोह-कनी है ख़ाम ख़याल
तेशे को ख़ल्लाक़ कहो या पत्थर को तस्वीर लिखो
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
ख़ल्लाक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बड़ा दिल-नवाज़ है
तख़्लीक़-ए-शम्अ' होते ही परवाना बन गया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
अतहर शकील
ग़ज़ल
मख़्लूक़ थे पे ख़ालिक़-ओ-ख़ल्लाक़ हो गए
भूखों को यूँ मिला है कि रज़्ज़ाक़ हो गए
सय्यद यूनुस एजाज़
ग़ज़ल
ख़लक़ के डर से जो सज्दा भी है ईक़ान भी है
नाम तूरी हो क़ुसूरी हो फ़ुतूरी क्या है