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ग़ज़ल
बे-नियाज़ी तो मिला करती है दुनिया से 'ख़याल'
तुम किसी तौर न तज्दीद-ए-ग़म-ए-ज़ात करो
रफ़ीक़ ख़याल
ग़ज़ल
कौन ख़्वाबों के जज़ीरे से चला आया 'ख़याल'
दिल में इक रौशनी है सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की तरह
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
ज़हर-ए-तन्हाई-ए-ग़म पी के मोहब्बत में 'ख़याल'
किस तरह मौत को जीने का सहारा कहिए
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
तुझ को ये नाज़ कि तो ख़ालिक़-ए-नग़्मा है 'ख़याल'
मुझ को ये फ़ख़्र कि तू ने मुझे बर्बाद किया