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इतनी फ़ुर्सत नहीं उस पैकर-ए-पिंदार के पास

रफ़ीक़ ख़याल

इतनी फ़ुर्सत नहीं उस पैकर-ए-पिंदार के पास

रफ़ीक़ ख़याल

MORE BYरफ़ीक़ ख़याल

    इतनी फ़ुर्सत नहीं उस पैकर-ए-पिंदार के पास

    बन के आए वो मसीहा किसी बीमार के पास

    गर यूँही वहशतें रक़्साँ रहीं दालानों में

    कोई साया रहेगा किसी दीवार के पास

    रोज़ आँखों को नया तर्ज़-ए-सुख़न मिलता है

    रोज़ जाता हूँ किसी यार-ए-तरह-दार के पास

    फ़स्ल-ए-ग़म देख के नम-दीदा हुआ चर्ख़-ए-फ़लक

    शायद आँखें ही नहीं आइना-बरदार के पास

    मेरी दीवानगी ख़्वाबों से बग़ल-गीर हुई

    दश्त आबाद किया जब किसी गुलज़ार के पास

    रंग-ओ-निकहत के ख़ज़ाने भी ज़मीं-बोस हुए

    चल के ख़ुद आने लगी ख़ुश्बू ख़रीदार के पास

    'ख़याल' अपने इरादों को तवाना रक्खो

    मुफ़्लिसी आती नहीं है किसी फ़नकार के पास

    स्रोत :
    • पुस्तक : Tujhe ky Maloom (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : Rafique Khayaal
    • प्रकाशन : Alhamd Publications (2007)
    • संस्करण : 2007

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