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ग़ज़ल
क़ुल्ज़ुम-ए-उल्फ़त में वो तूफ़ान का आलम हुआ
जो सफ़ीना दिल का था दरहम हुआ बरहम हुआ
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
तारे गिनते रात कटती ही नहीं आती है नींद
दिल को तड़पाता है हिज्र आँखों को तरसाती है नींद
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है
आज एक ज़लज़ला सा हर इक बाम-ओ-दर में है
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
क्या फल लगा है नख़्ल-ए-तमन्ना-ए-यार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
इसी को हाँ इसी को इश्क़ का नज़राना कहते हैं
सरिश्क-ए-ग़म को या'नी गौहर-ए-यक-दाना कहते हैं
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब
चश्म-ए-बीना से अगर देखो तो घर का घर ख़राब
अनवर देहलवी
ग़ज़ल
किसी दिन देख लो आलम मिरी बेताबी-ए-दिल का
तमाशा देखना मंज़ूर है गर रक़्स-ए-बिस्मिल का
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
अब इम्तियाज़-ए-जल्वा-गह-ओ-जल्वा-गर कहाँ
मेरी नज़र में पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर कहाँ