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ग़ज़ल
किचन में तोड़ कर अंडे सितम तोड़ा है ये कह कर
सफ़ेदी आप की है और सारी ज़र्दियाँ मेरी
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
जफ़ा-शिआरों में शायद आ जाए इस तरह कुछ असर वफ़ा का
मँगा के मुर्ग़ियों के अंडे बतों के नीचे बिठा दिए हैं
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूँ