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ग़ज़ल
हम उन से टूट कर मिलते हैं मिल कर टूट जाते हैं
तमाशा है कि शीशे से भी पत्थर टूट जाते हैं
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
मोहब्बत का ये अफ़्साना हयात-ए-मुख़्तसर का है
हँसी थोड़े दिनों की है तो रोना उम्र भर का है
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
अदब की इल्म-ओ-फ़न की इक मुकम्मल दास्ताँ मैं हूँ
मैं उर्दू हूँ मैं उर्दू दुख़्तर-ए-हिन्दोस्ताँ मैं हूँ
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
रह-ए-हस्ती में कोई रहनुमा होना ज़रूरी है
सफ़र कश्ती का हो तो नाख़ुदा होना ज़रूरी है
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
न मेरा हुस्न-ए-ज़न समझा न अंदाज़-ए-सुख़न देखा
अगर देखा तो दुनिया ने दरीदा पैरहन देखा