आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "araq"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "araq"
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
कुछ लिखा है तुझे हर बर्ग पे ऐ रश्क-ए-बहार
रुक़आ वारें हैं ये औराक़-ए-ख़िज़ानी उस की
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हो गया तिफ़्ली ही से दिल में तराज़ू तीर-ए-इश्क़
भागे हैं मकतब से हम औराक़-ए-मीज़ाँ छोड़ कर