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ग़ज़ल
दरिया पर क़ब्ज़ा था जिस का उस की प्यास अज़ाब
जिस की ढालें चमक रही थीं वही निशाना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
वो जो नज़र से है निहाँ उस का जहाँ है तू कि मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
नया मस्लक नया रंग-ए-सुख़न ईजाद करते हैं
उरूस-ए-शेर को हम क़ैद से आज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
सुनी न मिस्र ओ फ़िलिस्तीं में वो अज़ाँ मैं ने
दिया था जिस ने पहाड़ों को रा'शा-ए-सीमाब
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मंदिरों में भजन मस्जिदों में अज़ाँ आदमी है कहाँ
आदमी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ सो हुआ