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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
उलझ पड़ने में काकुल हो बिगड़ने में मुक़द्दर हो
पलटने में ज़माना हो बदलने में हवा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बदलते जा रहे हैं हम भी दुनिया को बदलने में
नहीं बदली अभी दुनिया तो दुनिया को अभी बदला