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ग़ज़ल
बुआ मिट्टी है घर में सोने चाँदी की अगर सिल हो
मज़ा तो ज़िंदगी का जब है कुछ दौलत हो कुछ दिल हो
शैदा इलाहाबादी
ग़ज़ल
ख़ातिर-ए-हुस्न-ए-गुल-ए-तर आगे जाना है अबस
जानिब-ए-बलिया बुआ गुलहा-ए-बक्सर देख कर
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
करते क्या क्या नहीं वो रंज के सामाँ सर पर
रखते ला ला हैं बुआ रोज़ मुग़ल जाँ सर पर