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ग़ज़ल
बुतों का साथ दिया बुत-शिकन का साथ दिया
फ़रेब-ए-इश्क़ ने हर हुस्न-ए-ज़न का साथ दिया
वफ़ा मलिकपुरी
ग़ज़ल
ग़ज़नवी तो बुत-शिकन ठहरा मगर 'ख़ातिर' ये क्या
तेरे मस्लक में उसे सज्दा रवा कैसे हुआ
ख़ातिर ग़ज़नवी
ग़ज़ल
नज़र से था शरर-ए-संग की तरह जो निहाँ
वो बुत मिला मुझे इक बुत-शिकन के पर्दे में
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
यूँ तराशे हैं सनम कुफ़्र के इस दुनिया ने
बुत-शिकन होता जो इस दौर में 'आज़र' होता
हैदर अली जाफ़री
ग़ज़ल
आया तो दिल में बैठ गया बन के देवता
उट्ठे नहीं हैं 'इश्क़-ए-दिल-ए-बुत-शिकन के पाँव
चंद्रशेखर पाण्डेय शम्स
ग़ज़ल
ग़ज़नवी हूँ और गिरफ़्तार-ए-ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-अयाज़
बुत-शिकन हूँ और दिल में बुत-कदा रखता हूँ मैं