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ग़ज़ल
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
इस लिए फिर आए का'बे से कि मय-ख़ाना न था
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
उन की मस्त आँखों ने कर डाला है मस्ताना मुझे
अब नहीं है एहतियाज-ए-दौर-ए-पैमाना मुझे
जौहर ज़ाहिरी
ग़ज़ल
वो मुझे देखा करें और मैं उन्हें देखा करूँ
लुत्फ़ इसी में है कि यूँ ही दौर-ए-पैमाना रहे
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
हवा-ए-फ़स्ल-ए-गुल आई घटा घनघोर जब छाई
चला यूँ दौर-ए-पैमाना कि मयख़ाने मचल उट्ठे
हामिद-उल-अंसारी अंजुम
ग़ज़ल
कहो बादा-कशो क्या हाल है फ़ैज़ान-ए-साक़ी का
कभी महफ़िल में दौर-ए-जाम-ओ-पैमाना भी आता है