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ग़ज़ल
हर्फ़-ए-सादा वरक़-ए-नम सुख़न-ए-ख़ुद-रफ़्ता
दिल है या मीर-तक़ी-'मीर' का दीवाँ जैसे
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
'फ़ैज़' वस्फ़-ए-मुसहफ़-ए-रुख़्सार में याँ तक हूँ महव
है मिरे दीवान पर धोका मुझे तफ़्सीर का
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
यूँ ही हैरान-ओ-ख़फ़ा जों ग़ुंचा-ए-तस्वीर हों
उम्र गुज़री पर न जाना मैं कि क्यूँ दिल-गीर हों
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
टुक दर तक अपने आ मिरे नासेह का हाल देख
मैं तो दिवाना था पे सियाने ने क्या किया