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ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
हिजाब अहल-ए-मोहब्बत को आए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कहाँ कहाँ न नज़र ने तुम्हारी काम किया
उतर के दिल में उमीदों का क़त्ल-ए-आम किया
सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी
ग़ज़ल
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
वगर्ना तेरा होना और न होना एक जैसा है
किसी अहल-ए-नज़र से मिल अगर होने की ख़्वाहिश है
तौक़ीर रज़ा
ग़ज़ल
रंग-ओ-नाम-ओ-नस्ल के झगड़े मिटा लीजे ज़रा
हम गले मिल लेंगे ये पर्दे उठा लीजे ज़रा
सादुल्लाह खां असर मल्कापुरी
ग़ज़ल
कहा है किस ने कि अब तो शायद गुलाब मौसम इधर न आए
भला ये मुमकिन है जाने वाला पलट के 'फ़ीरोज़' घर न आए