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ग़ज़ल
उस ने किया है वादा-ए-फ़र्दा आने दो उस को आए तो
नाम बदल देना फिर मेरा लौट के वापस जाए तो
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
गुज़िश्ता शब जो हस्ती बर-फ़राज़-ए-दार थी मैं था
फिर अगले दिन जो सुर्ख़ी शौकत-ए-अख़बार थी मैं था
इदरीस आज़ाद
ग़ज़ल
हुई तौक़-ओ-सलासिल को हमारे जब कभी जुम्बिश
सदा-ए-रस्तगारी हम को 'फ़रहत' बार बार आई
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
क़रार-ओ-बे-क़रारी लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं दोनों
न 'फ़रमान' इस पे हर्फ़ आए न उस पर कोई बार आए
फ़रमान ज़ियाई सिरोजनी
ग़ज़ल
महबूब ख़ाँ रौनक़
ग़ज़ल
पलट के बार-ए-दिगर मोहब्बत दबोच लेती
अगर मैं राह-ए-फ़रार भी इख़्तियार करता