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ग़ज़ल
हर कली में बेकली हर फूल में पज़मुर्दगी
इस ख़िज़ाँ को हम बहार-ए-जावेदाँ कैसे कहें
बिर्ज लाल रअना
ग़ज़ल
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
क्यूँ न दिल-ए-ख़िज़ाँ-नसीब हर गुल-ए-तर को चूम ले
आज तो फूल फूल में ज़ाइक़ा उस के लब का है