इस जौर-ओ-जफ़ा की दुनिया में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाती है
इस जौर-ओ-जफ़ा की दुनिया में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाती है
मासूम को फाँसी मिलती है क़ातिल को दुआ दी जाती है
किस तरह भला क़ाएम होगी ऐसे में फ़ज़ा यक-जेहती की
नफ़रत के भड़कते शो'लों को दामन से हवा दी जाती है
दुनिया से निराला ऐ गुलचीं इंसाफ़ है तेरे गुलशन का
दामन से उलझते हैं काँटे फूलों को सज़ा दी जाती है
जो काम ख़िलाफ़-ए-फ़ितरत हो उस काम में इस्तिहकाम नहीं
कहने को तो काग़ज़ की कश्ती पानी में चला दी जाती है
पैराहन-ए-कम-ख़ाब-ओ-रेशम इक बार-ए-गराँ है जिन के लिए
इन फूल से नाज़ुक जिस्मों को ज़ख़्मों की क़बा दी जाती है
अदबार-ओ-नहूसत का बादल उस वक़्त बरसता है घर घर
पाकीज़ा रिवायत माज़ी की जब दिल से भुला दी जाती है
अब हक़ के अलम-बरदारों पर है नफ़्स-परसती का ग़लबा
इस दौर-ए-ज़ुबूँ में हर सच्ची आवाज़ दबा दी जाती है
जब दामन-ए-दिल हो जाता है एहसास की दौलत से ख़ाली
रुस्वाई-ओ-ज़िल्लत क़ौमों की तक़दीर बना दी जाती है
अख़्लाक़-ओ-उख़ुव्वत की बातें हैं सब की ज़बानों पर लेकिन
मंसब की हवस में आपस की तफ़रीक़ बढ़ा दी जाती है
आलम है वो किब्र-ओ-नख़वत का झुकते नहीं रूह-ओ-दिल अपने
दरबार-ए-ख़ुदा में ऐ 'नासिर' गर्दन तो झुका दी जाती है
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