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ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-नश्व-ओ-नुमा है मिरे दिल में लेकिन
जितना उठता हूँ कोई ख़ुद से घटाता है मुझे
शारिक़ जमाल
ग़ज़ल
मुझ में से रफ़्ता रफ़्ता घटाता रहा मुझे
वो थोड़ा थोड़ा रोज़ चुराता रहा मुझे
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ी-कश
दम-दार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो