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ग़ज़ल
मिरे हर्फ़ ओ सौत भी छीन ले मिरे सब्र-ओ-ज़ब्त के साथ तू
मिरा कोई माल बुरा नहीं मेरा सारा माल समेट ले
राम रियाज़
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले