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ग़ज़ल
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
बे-विसाल अच्छा हुआ भी कोई बीमार-ए-फ़िराक़
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
मताअ'-ए-जुरअत-ए-दिल वक़्फ़-ए-यक-निगाह-ए-करम
वजूद बे-सर-ओ-सामाँ रहीन-ए-मुल्क-ए-अदम
तल्हा रिज़वी बर्क़
ग़ज़ल
नशा था मुझ को और यारों ने चाहा छीन लें बोतल
मगर काम आ गई कुछ जुरअत-ए-रिंदाना मस्ती में
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ग़ज़ल और इस ज़मीं में पढ़िए वो 'जुरअत' कि सुन जिस को
कहें आशिक़ कलाम-ए-आशिक़ाना इस को कहते हैं