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ग़ज़ल
ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
ये वो माजरा-ए-फ़िराक़ है जो मोहब्बतों से न खुल सका
कि मोहब्बतों ही के दरमियाँ सबब-ए-जफ़ा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
देखना इस इश्क़ की ये तुरफ़ा-कारी देखना
वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शरमाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कुछ इम्तिहान-ए-दस्त-ए-जफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ उन की दस्तरस का पता कर चुके हैं हम