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ग़ज़ल
कैसे कैसे अंदेशे उन कबूतरों से हैं
गुम्बद-ए-शिकस्ता पर जो न शाम तक पहुँचे
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
कैसे कैसे अंदेशे उन कबूतरों से हैं
गुम्बद-ए-शिकस्ता पर जो न शाम तक पहुँचे
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
वो जो कबूतर उस मूखे में रहते थे किस देस उड़े
एक का नाम नवाज़िंदा था और इक का बाज़िंदा था