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ग़ज़ल
ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
जुज़ साया-ए-ख़ुदा कहीं दार-उल-अमाँ नहीं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
कट गई 'उम्र इसी एक तजस्सुस में मिरी
बज़्म-ए-आलम में कहीं अम्न का 'आलम न मिला
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
'असर' क्यूँ-कर न जानूँ उस के दर को क़िब्ला-ए-आलम
उसी जानिब कई रुख़ काफ़िर ओ दीं-दार बैठे हैं
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
आप के लुत्फ़-ओ-करम की मैं तमन्ना करता
ग़म-ओ-आलाम से फ़ुर्सत कभी ऐसी तो न थी
सय्यद मंज़र हसन दसनवी
ग़ज़ल
फ़साद फूट पड़ा शहर में मिरे 'नक़वी'
सितम था क़हर था यौम-उल-हिसाब था क्या था
मोहम्मद सिद्दीक़ नक़वी
ग़ज़ल
मुक़द्दर में जो लिक्खा है कभी वो टल नहीं सकता
बताया है मगर दार-उल-'अमल दुनिया को तो रब ने