बदन में ज़हर था या इज़्तिराब था क्या था
बदन में ज़हर था या इज़्तिराब था क्या था
मोहम्मद सिद्दीक़ नक़वी
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बदन में ज़हर था या इज़्तिराब था क्या था
ये ज़िंदगी में मुसलसल अज़ाब था क्या था
समाअतों से बदन तक था छलनी छलनी तमाम
किसी का लहजा था या आफ़्ताब था क्या था
वो जिस की दीद से आँखें हमारी ख़ीरा हुईं
किसी का हुस्न था या माहताब था क्या था
मैं भागता ही रहा तिश्नगी बुझी न मिरी
ये मेरा वहम था या फिर सराब था क्या था
गिरा गया है जो शादाब सब्ज़ पेड़ों को
वो ज़लज़ला था कि कोई अज़ाब था क्या था
जो मेरी चश्म-ए-फ़लक पर कभी ठहर न सका
सहाब था कि हसीं एक ख़्वाब था क्या था
मैं अपने आप को हल कर सका न आख़िर तक
मिरा वजूद मुअ'म्मा था ख़्वाब था क्या था
फ़साद फूट पड़ा शहर में मिरे 'नक़वी'
सितम था क़हर था यौम-उल-हिसाब था क्या था
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