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ग़ज़ल
अक़्ल-ओ-शुऊर भी हैं क्या उक़्दा-ए-राज़-ए-दहर हैं
रह गए और उलझ के हम सई-ए-कशूद-ए-राज़ में
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
कशूद-ए-मतलब-ए-आशिक़ के हैं लब पर गुमाँ क्या क्या
अदा-ए-ख़ामुशी में भर दिया रंग-ए-बयाँ क्या क्या
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
जहाँ कशूद-ए-नवा पर ख़िज़ाँ के पहरे हैं
वहीं बहार-ए-ग़ज़ल-ख़्वाँ है देखिए क्या हो
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो