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ग़ज़ल
ये साबित कर दिया तुझ को बना कर दस्त-ए-क़ुदरत ने
कि हो सकती हैं इतनी ख़ूबियाँ सूरत में इंसाँ की
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम
पर हर इक ख़ूबी में दाग़ इक ऐब का पाते हैं हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
अभी देखी कहाँ हैं आप ने सब ख़ूबियाँ मेरी
निगाहें ढूँढती हैं आप की बस ख़ामियाँ मेरी
ग़ौसिया ख़ान सबीन
ग़ज़ल
ख़ूबियाँ तुझ में हैं ऐ इश्क़ ज़माने भर की
ये तो कुछ दावा-ए-हमताई-ए-ख़ूबाँ न हुआ