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ग़ज़ल
किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा
जो आफी मर रहा हो उस को गर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मिरे सीने से तेरा तीर जब ऐ जंग-जू निकला
दहान-ए-ज़ख़्म से ख़ूँ हो के हर्फ़-ए-आरज़ू निकला
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ
वर्ना जिगर को रोएगा तू धर के सर पे हाथ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर
चल बसा वो आज सब हस्ती का सामाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है
लेकिन बला से यार के ज़ानू पे सर तो है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में
शम्अ' है इक सोज़न-ए-गुम-गश्ता इस काशाना में
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
हर लाला याँ है नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ख़ुतन मुझे