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ग़ज़ल
हमारे क़ाफ़िए तो हो गए सब ख़त्म ऐ 'अकबर'
लक़ब अपना जो दे दें मेहरबानी है ये जोशी की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
आओ फिर 'जोश' को दे कर लक़ब-ए-शाह-ए-सुख़न
दिल-ओ-दीन-ए-सुख़न ओ जान-ए-हुनर ताज़ा करें
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
'सय्याह'-ए-बे-नवा हूँ जहाँ-गर्द है लक़ब
गर्दिश में चर्ख़-ए-पीर भी मेरा मुरीद है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
चश्म-ए-महबूब को नर्गिस का लक़ब तू ने दिया
मैं ने शेरों में मगर ''रात की रानी'' लिक्खी
करामत अली करामत
ग़ज़ल
न बहर जारी सहाब से है न चाह लबरेज़ आब से है
वो दामन-ए-तर का इक लक़ब है ये नाम है मेरी आस्तीं का
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
चाँदनी रातें बहार अपनी दिखाती हैं तो क्या
बे तिरे मुझ को तो लुत्फ़ ऐ मह-लक़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
इबादत नाम है उस का शरीअ'त है लक़ब उस का
दिल-ओ-जाँ से जो ख़िल्क़त की इताअ'त हो इताअ'त हो