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ग़ज़ल
लोक कहानियों में मा-बा'द-ए-जदीद की पेश-आमद जैसे
फ़िक्शन की री-सेल वैल्यू में मज़हब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
इश्क़ में 'अंजुम' ले डूबी है थोड़ी सी ताख़ीर
जन्मों पहले जो वाजिब था वो मा-बाद किया
अंजुम सलीमी
ग़ज़ल
सिर्फ़ इक दिल ही वो मा'बद है वो इक मा'बद-ए-इश्क़
जिस में नाक़ूस हम-आवाज़-ए-अज़ाँ होता है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
कुछ तो बता दो कौन है जो तेरे मनवा को लूट गया
किस की ख़ातिर तो मअ'बद में दीप जलाने जाती है