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ग़ज़ल
अपने सीने के मिना में भी तह-ए-ख़ंजर-ए-इश्क़
जब कोई फ़िदया बदलता है ग़ज़ल होती है
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बे-ख़बरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
रौशन-ज़मीर हैं ये तिरे ख़ाकसार-ए-इश्क़
रखते हैं फ़ैज़-ए-इश्क़ से नूर-ओ-सफ़ा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
क्या करूँ ऐ ख़ंजर-ए-ग़म क्या करूँ ऐ तीर-ए-‘इश्क़
हैं तो दो पहलू मगर दोनों में एक इक दिल नहीं