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ग़ज़ल
हुज़ूर मिल के आप से मैं आज मुस्कुरा दिया
तबस्सुम आप का जो इक उधार था चुका दिया
फ़सीहुल्ला नक़ीब
ग़ज़ल
'मीर' का सोज़-ए-बयाँ हो तो ग़ज़ल होती है
'दाग़' का लुत्फ़-ए-ज़बाँ हो तो ग़ज़ल होती है
शिव दयाल सहाब
ग़ज़ल
सुनो टुक गोश-ए-दिल से क़िस्सा-ए-जाँ सोज़ को मेरे
कि जग-बीती नहीं है आप-बीती ये कहानी है
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
मर जाने की उस दिल में तमन्ना भी नहीं है
अंदर से कोई कहता है जीना भी नहीं है
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया