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ग़ज़ल
दुनिया तेरे मतलब की है तू दुनिया के मतलब का
और दोनों के पास नहीं है कुछ भी मेरे मतलब का
हमीदा शाहीन
ग़ज़ल
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
ग़लत था ऐ जुनूँ शायद तिरा अंदाज़ा-ए-सहरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मुझे पूछा है आ कर तुम ने उस अख़्लाक़-ए-कामिल से
कि मैं शर्मिंदा हो कर रह गया अंदाज़ा-ए-दिल से
एहसान दानिश
ग़ज़ल
किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया
उस तूफ़ान से गुज़रे जिस ने नदी नदी को पार किया
ज़हीर काश्मीरी
ग़ज़ल
बुलंदी मंज़िलों की अज़्म से बढ़ कर बनाता हूँ
निशान-ए-राह ख़ुर्शीद-ओ-मह-ओ-अख़्तर बनाता हूँ
मोहम्मद रफ़ीक़ नदवी शाद
ग़ज़ल
हमेशा ही रहा ऊँचा झुका हरगिज़ न सर बरसों
रहा बेगम के आगे और ही आलम दिगर बरसों