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ग़ज़ल
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
ख़ूँ विरासत का रगों में फ़ख़्र के क़ाबिल हुआ
जब मिरे ही ख़ाक-दाँ से मेरा सर हासिल हुआ
असलम हनीफ़
ग़ज़ल
दूध जैसा झाग लहरें रेत और ये सीपियाँ
जिन को चुनती फिर रही हैं मोतियों सी लड़कियाँ
हसन अकबर कमाल
ग़ज़ल
जीते जी ख़ुद से मोहब्बत में गुज़रना है मुझे
सूरत-ए-मौजा-ए-रवाँ मिट के उभरना है मुझे