जीते जी ख़ुद से मोहब्बत में गुज़रना है मुझे
जीते जी ख़ुद से मोहब्बत में गुज़रना है मुझे
सूरत-ए-मौजा-ए-रवाँ मिट के उभरना है मुझे
याद में उन की मैं ख़ूँ-नाबा-फ़शाँ क्यों न रहूँ
रंग अब इश्क़ की तस्वीर में भरना है मुझे
ख़िज़्र हैं वो कि थी जिन को हवस-ए-आब-ए-हयात
बेहतर-अज़-ज़ीस्त तिरे इश्क़ में मरना है मुझे
हर शब इस हीले से आती है चमन में शबनम
मोतियों से मुँह हर इक फूल का भरना है मुझे
वादा-ए-दीद उठा रखते हो क्यों महशर पर
साफ़ ये क्यों नहीं कहते कि सँवरना है मुझे
साँस को चलते हुए देख के मैं जान गया
जामा-ए-उम्र इसी क़ैंची से कतरना है मुझे
ज़ौक़-आगीं मैं ग़ज़ल क्यों न सुनाऊँ 'ज़ाइक़'
नाम है जैसा मिरा काम भी करना है मुझे
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