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ग़ज़ल
मुवह्हिद वो हूँ गर मैं सिर्र-ए-वहदत कान में कह दूँ
मुअज़्ज़िन बुत-कदे में हों बरहमन ख़ानक़ाहों में
अब्दुल रहमान रासिख़
ग़ज़ल
मुअज़्ज़िन से जो पूछा हाथ रख कर उस ने कानों पर
कहा मुझ को ख़बर है क्या ख़ुदा जाने कहाँ है वो