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ग़ज़ल
इस सियासत में मियाँ आबाद हो जाने के बा'द
मर गए किरदार ज़िंदाबाद हो जाने के बा'द
बिलाल सहारनपुरी
ग़ज़ल
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
ब-खूँ-ग़ल्तीदा-ए-सद-रंग दा'वा पारसाई का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल बहलने का जहाँ में कोई सामाँ न हुआ
अपना हमदर्द कभी आलम-ए-इम्काँ न हुआ
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना
अपने हाथों से किया हाल परेशाँ अपना
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
गिला-शिकवा कहाँ रहता है दिल हम-साज़ होता है
मोहब्बत में तो हर इक जुर्म नज़र-अंदाज़ होता है