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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहीं भी वो चले जाएँ हमें अब छोड़ कर तन्हा
उन्हीं के ग़म में हम को यार अब पीना पिलाना है
रौनक़ कर्ण
ग़ज़ल
बुलाया है तुम्हें तो फिर भला घर क्यों नहीं जाते
मुझे अपनी मोहब्बत से रिहा कर क्यों नहीं जाते