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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
ज़हर पी लूँगा तिरे हाथ से सहबा क्या है
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
मिरे साक़िया मिरे साक़िया तुझे मरहबा तुझे मरहबा
तू पिलाए जा तू पिलाए जा इसी चश्म-ए-जाम-ब-जाम से
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जाम-ए-जम की धूम है सारे जहाँ में साक़िया
मानता हूँ मैं भी लेकिन तेरे पैमाने के बाद