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ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फ़ों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक शाना क्या