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ग़ज़ल
ज़ंजीरों से बँधा हुआ हर एक यहूदी तकता था
कोसों दूर से बाबुल का रौशन मीनार चमकता था
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
कुमार पाशी
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ में भी बहार-ए-जावेदाँ मालूम होती है
जवानी हो तो फिर हर शय जवाँ मालूम होती है
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
आँखों में वीरानी सी है पलकें भीगी बाल खुले
तू बे-वक़्त पशेमाँ क्यूँ है हम पर भी कुछ हाल खुले
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
आह उठने की कहें क्या दम ही बैठा जाए है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
उन को मा'लूम है कुछ अहल-ए-नज़र आएँगे